कर्म फल अवश्य भोगना ही पड़ता है धृतराष्ट्र सौ पुत्रों की मृत्यु किस कर्म के कारण हुई

साथियों! भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्मफल प्रत्येक मनुष्य को भोगना ही पड़ता है जो जैसा कर्म करता है उसे फल भी वैसा ही मिलता है अच्छे कर्म का अच्छा फल और बुरे काम का बुरा। 

कर्म फल



इसी से जुड़ा एक प्रसंग हमें महाभारत के युद्ध में मिलता है।

महाभारत के युद्ध में अपने सौ पुत्रों की मृत्यु के पश्चात महाराज धृतराष्ट्र ने श्री कृष्ण भगवान से पूछा हे माधव बाप के रहते हुए उसके सौ सौ पुत्र मर जाएं और इन सबके दुख के लिए बाप को रो-रो कर मरना पड़े ऐसा किस पाप कर्म का दंड मुझे मिल रहा है मैंने अपने इस जन्म और पिछले जन्म के कर्मों पर नजर डाली परंतु मुझे कहीं ऐसा कोई कर्म दिखाई नहीं दिया। अब आप ही बताएं ऐसा किस पाप कर्म के कारण मुझे ऐसा महान दुख प्राप्त हुआ है।



भगवान श्रीकृष्ण बोले हे महाराज आपका यह पाप कर्म कई जन्मों पूर्व का है तब आप एक न्याय प्रिय राजा थे। दया धर्म और प्रजा वात्सल्य के लिए विख्यात थे।

यद्यपि तुम्हारा जीवन सात्विक था और तुम शाकाहारी थे परंतु स्वाद लोलुप होने के कारण भोजन सात्विक है या नहीं शाकाहारी है या नहीं शुद्ध है या नहीं का ध्यान किए बिना ही भोजन पर टूट पड़ते।

तुम्हारी इस कमजोरी को तुम्हारा रसोईया जान गया था इसलिए वह तुम्हारे भोजन में पक्षियों का मांस मिलाकर तुम्हें खिलाने लगा। पक्षियों का मांस खाने में तुम्हें आनंद आने लगा यह डीपी यह तुम्हें पता नहीं था परंतु स्वाद के चक्कर में तुम यह पूछना भूल जाते। और स्वादिष्ट भोजन के लिए रसोइए को प्रतिदिन इनाम दिया करते थे इनाम के चक्कर में रसोई ने हंस के 100 कोमल बच्चों का मांस तुम्हें खिला दिया ।

महाराज इसी पाप का दंड आजा भोग रहे हैं पूर्व में आप शाकाहारी थे इसलिए राजा बने आंखें होते हुए भी बिना देखे ही सब कुछ खा लेते थे इसलिए आज अंधे हो और हंस के सौ कोमल बच्चों का मांस खाने के कारण आज तुम्हारे सौ पुत्रों की मृत्यु हुई है।

साथियों भगवान कहते हैं कि कर्म फल सब को भग नहीं पड़ता है। यदि आज हमें कोई दुख अथवा संकट आता है तो समझना चाहिए कि इसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं इसलिए कहा भी गया है कर भला तो हो भला।